एक बार कुछ दरबारियों ने महाराज अकबर से कहा , महाराज , आजकल बीरबल को ज्योतिष का शौक चढ़ा है । कहता फिरता है कि मैं मन्त्रों से कुछ भी कर सकता हूं । तभी दूसरे दरबारी ने कान भरे - हाँ महाराज वह बहुत शेखी बघारता है । हम तो परेशान हो गये उससे । दरबार के काम में जरा भी रुचि नहीं लेता ।
राजा बोले- अच्छा परखकर देखते हैं बीरबल के मत्रों में क्या दम - खम है । यह कहते हुए राजा ने एक दरबारी से कहा- तुम अंगूठी छुपा लो । आज इसी के बारे में पूछेगे । तभी बीरबल दरबार में आया । बादशाह को प्रणाम कर अपनी जगह जा बैठा ।
अकबर बोले- बीरबल , अभी - अभी मेरी अगूठी कहीं गायब हो गई । जरा पत्ता लगाओ । सुना है , तुम तन्त्र - मन्त्र से बहुत कुछ कर सकते हो ।
बीरबल ने कनखियों से दरबारियों की ओर देखा । वह समझ गया था कि उसके विरुद्ध राजा के कान भरे गए हैं । कुछ सोचकर उसने कागज पर आड़ी - तिरछी रेखायें खींची , फिर बोला - महाराज , आप इस पर हाथ रखें , अंगूठी जहां भी होगी , अपने आप अंगुली में आ जाएगी । राजा उस तंत्र पर हाथ रख दिया ।
तभी बीरबल चावल हाथ में लेकर दरबारियों की ओर फेंकने लगा । जिसके पास अंगूठी थी , वह सोचने लगा- कहीं सचमुच अंगूठी निकलकर राजा के पास न पहुंच जाए । उसने कसकर जेब पर हाथ रख लिया।
बीरबल यह देख रहा था । बोला – महाराज , अंगूटी तो मिल गई , लेकिन उस दरबारी ने कसकर पकड़ रखी है । अकबर बीरबल का संकेत समझकर हंस पड़े । उन्होंने अंगूठी पुरस्कार में बीरबल को दे दी । चुगली करने वालों के सिर शर्म से झुक गये ।
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