और क्या कढ़ी कहानी | अकबर बीरबल की कहानियां akbar birbal ki kahaniyan
एक दिन बीरबल को अपने किसी सम्बन्धी के यहां निमन्त्रण में जाना था , जिस कारण वह दरबार खत्म होने से पहले बादशाह से अवकाश ले विदा हुए ।
दूसरे दिन जब बीरबल आये तो बादशाह ने निमन्त्रण के भोजन के बारे में पूछना शुरू किया , कैसा खाना बना था , क्या - क्या था आदि ।
बीरबल ने कई पकवानों के नाम बतला दिये और कुछ आगे बतला रहे थे कि बादशाह ने उन्हें किसी दूसरे प्रश्न में उलझा दिया । जिससे उनका कहना भी बन्द हो गया ।
इस घटना को काफी दिन गुजर गये । एक दिन बादशाह दरबारियों के साथ दरबार में बैठे थे । अन्य दरबारियों के साथ बीरबल भी था ।
आज बादशाह को याद आया कि बीरबल ने उस दिन कहते - कहते अधूरे में ही भाजन सामग्री का वर्णन छोड़ दिया था । उन्हें बीरबल की " त्याण शक्ति की परीक्षा लेने की सूझी ।
वे अचानक बोले - बीरबल ! और क्या । बीरबल अच्छी तरह समझ गये कि उस दिन भोजन सामग्री की नाम बतलाते हुए मैं किसी और काम में उलझ गया था और बात अधूरी रह गई थी , बादशाह आज उसी बात को पुरा करने की गरज से पूछ रहे हैं ।
बीरबल ने तुरन्त जवाब दिया और क्या कढ़ी ? बीरबल की गजब की स्मरण शक्ति देख बादशाह बहुत ही खुश हुए और अपने गले से मोती की माला उतार कर बीरबल को दे दी ।
उपस्थित मण्डली यह न समझ सकी कि किस रहस्यमयी दात के ऊपर बीरबल को मोती की माला मिली है ।
लोगों ने विचार किया कि शायद बादशाह को कढ़ी बड़ी प्रिय है , इसलिए बीरबल को मोतियों की माला मिली है ।
अन्य दरबारियों का मन भी ललचाया , मोती की माला पाने की इच्छा सभी में जाग गई थी ।
दूसरे दिन बढ़िया - बढ़िया कढ़ी अपने यहां लोगों ने तैयार करवाई । जितना अच्छा तरीका वे जानते थे उसमें किसी भी किस्म की कमी नहीं की गई ।
जब दरबार का समय हुआ तो नौकर को कढ़ी देकर सब साथ चले । बादशाह के सामने ले जाकर सबों ने अपनी - अपनी कढ़ी की हांडी रख दी ।
बादशाह की समझ में कुछ नहीं आया । उन्होंने सभासदों से पूछा कि इसमें क्या है और किसलिए लाये हैं ।
सब दरबारियों ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि जहांपनाह ! आपने कल इसी शब्द के कहने पर बीरबल को खुश होकर मोतियों की माला दे दी थी ।
हम समझे कि आपको कढ़ी बहुत पसन्द है , इसीलिये आज हम कढ़ी ही आपकी सेवा में भेंट करने के लिए लाये हैं ।
दरबारियों की मूर्खता से बादशाह तिलमिला उठे , आवेग में आकर बुरा - भला कहते हुए सबको जेल में बन्द कर देने का हुक्म दिया तथा बोले - तुम लोग बस नकल करना जानते हो , दूसरे को फलते हुए नहीं देख सकते , जाओ तुम सबका यही दण्ड है ।
दरबारियों ने बादशाह से काफी क्षमा प्रार्थना की तब बादशाह ने उसको दण्ड से मुक्त किया और बोले , आज से प्रतिज्ञा करो कि बिना समझे - बूझे किसी की नकल नहीं करोगे । सारे सभासदों ने ऐसा ही किया ।
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