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Table of content (TOC)
MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 1 प्रबंध-प्रकृति एवं महत्व
प्रबंध-प्रकृति एवं महत्व Important Questions
प्रबंध-प्रकृति एवं महत्व वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए
- प्रबंध के कितने आधारभूत तत्व हैं ?
- प्रबंध की आवश्यकता किन-किन क्षेत्रों में होती है ?
- प्रबंध के तीन स्तर कौन से हैं ?
- प्रबंध का कौन-सा कार्य प्रबंध का आधारभूत (प्राथमिक) कार्य माना जाता है ?
- प्रबंध के उस स्तर का नाम लिखिए जिनमें कर्मचारियों के कार्यों को देखना शामिल है।
- यदि पिता प्रबंधक है और उसका पुत्र भी प्रबंधक है तो ऐसी प्रतिभा को क्या कहेंगे?
- व्यवस्थित ज्ञान को क्या कहते हैं ?
- दूसरों से कार्य कराने की कला किसे कहते हैं ?
- प्रबंध की सम्पूर्ण क्रियाएँ किससे संबंधित हैं ?
- पेशे के अन्तर्गत सदस्यों के व्यवहारों के मार्गदर्शन व नियंत्रण हेतु जो दिशा-निर्देश दिये जाते हैं,उसे क्या कहते हैं?
- नीतियाँ निर्धारित करना प्रबंध के किस स्तर का कार्य है ?
- समन्वय की आवश्यकता प्रबंध के किस स्तर पर होती है ?
- व्यक्तिगत कौशल के प्रयोग द्वारा वांछित परिणाम प्राप्त करना क्या कहलाता है ?
- प्रशिक्षण व अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान का सामाजिक हित हेतु प्रयोग करना क्या कहलाता है ?
- क्या प्रबंध में कला की सभी विशेषताएँ विद्यमान हैं ?
उत्तर:
- पाँच
- सभी क्षेत्रों में
- प्रबंध के तीन स्तर होते हैं-(अ) उच्च स्तर, (ब) मध्य स्तर तथा (स) निम्न स्तर
- नियोजन
- पर्यवेक्षकीय स्तर/निम्न स्तर
- जन्मजात प्रतिभा
- विज्ञान
- प्रबंध
- मनुष्य से
- आचार संहिता
- उच्च स्तरीय प्रबंध का
- सभी तीनों स्तर पर
- कला
- पेशा
- हाँ, प्रबंध में कला की सभी विशेषताएँ विद्यमान हैं।
प्रबंध-प्रकृति एवं महत्व अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
प्रबंध क्या है ?
उत्तर:
प्रबंध सर्वश्रेष्ठ तरीके से काम को करवाने की एक कला है।
प्रश्न 2.
प्रबंध का व्यवसाय में क्या महत्व है ?
उत्तर:
प्रबंध का व्यवसाय में वही महत्व है जो मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क का होता है।
प्रश्न 3.
शीर्ष स्तरीय प्रबंध में कौन-कौन से अधिकारी शामिल हैं ?
उत्तर:
शीर्ष स्तरीय प्रबंध में निम्न अधिकारी शामिल होते हैं
- संचालक मण्डल
- प्रबंध संचालक
- मुख्य प्रबंधक।
प्रश्न 4.
प्रबंध के पाँच एम से क्या आशय है ?
उत्तर:
- प्रबंध के पाँच एम हैं-मानव (Men)
- माल (Material)
- मशीन (Machine)
- मुद्रा (Money)
- तथा विधि (Method)
यह प्रबंध के आधारभूत तत्व कहलाते हैं।
प्रश्न 5.
यह क्यों कहा जाता है कि प्रबंध सर्वव्यापक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्योंकि प्रबंध की आवश्यकता सभी क्षेत्रों में है जैसे-व्यावसायिक, गैर-व्यावसायिक, राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र आदि।
प्रश्न 6.
प्रबंध के पहले और अंतिम कार्य को लिखिए।
उत्तर:
नियोजन प्रबंध का प्रथम कार्य और नियंत्रण प्रबंध का अंतिम कार्य है।
प्रश्न 7.
प्रबंध का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
प्रबंध से आशय दूसरों से कार्य कराने की कला से है। प्रबंध के अन्तर्गत इस बात को शामिल किया जाता है कि उपक्रम में कर्मचारियों द्वारा अच्छे से अच्छा कार्य कैसे कराया जाये ताकि न्यूनतम समय में न्यूनतम लागत पर अधिकतम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
प्रबंध-प्रकृति एवं महत्व लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रबंध को बहुरूपीय अवधारणा क्यों माना गया है ?
उत्तर:
प्रबंध को बहुआयामी अवधारणा इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें बहुत-सी क्रियायें शामिल होती हैं। उनमें से तीन मुख्य क्रियायें निम्नलिखित हैं
- कार्य का प्रबंध- उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्य का प्रबंध करना।
- लोगों का प्रबंध- कर्मचारियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की देखभाल करना, व्यक्तियों के समूहों की देखभाल करना आदि।
- प्रचालन का प्रबंध- आगतों का क्रय करना तथा उन्हें अर्द्ध निर्मित वस्तुओं में बदलना।
प्रश्न 2.
प्रबंध की किन्हीं तीन विशेषताओं को समझाइये।
उत्तर:
प्रबंध की विशेषताएँ
1. प्रबंध के सिद्धान्त गतिशील हैं – प्रबंध अपने समक्ष नित्य प्रति उपस्थित समस्याओं का सूक्ष्म विश्लेषण करता है और तद्नुसार गंभीर निर्णय लेकर उसे कार्यान्वित करता है। प्रबंध सामाजिक परिवर्तन के साथ – साथ प्रबंध तकनीक में नवीनता लाने का प्रयास करता है। इससे स्पष्ट है कि प्रबंध सामाजिक परिवर्तन को अधिक गतिशीलता प्रदान करता है।
2. प्रबंध एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है – प्रबंध में नियोजन, क्रियान्वयन, नियंत्रण, समन्वय, अभिप्रेरण, निर्देशन इत्यादि सम्मिलित हैं, जिनकी सहायता से पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सकती है।
3. प्रबंध का निश्चित उद्देश्य होता है – प्रत्येक प्रबंधकीय प्रक्रिया का विशिष्ट उद्देश्य होता है, जिसका निर्धारण प्रशासन द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3.
प्रबंध के सहायक कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबंध के सहायक कार्य निम्नलिखित हैं
1. नवप्रवर्तन-सामान्यतः नवप्रवर्तन या नवाचार का आशय उत्पादन के लिए नई डिजाइन, एक नवीन . उत्पादन विधि या नवीन विपणन तकनीक से है। नवप्रवर्तन प्रबंध का महत्वपूर्ण सहायक कार्य है। इस हेतु बड़ेबड़े व्यापार गृह शोध एवं विकास विभाग की पृथक से स्थापना करते हैं।
2. संप्रेषण-संदेशवाहन या संचार व्यवस्था अथवा संप्रेषण का अभिप्राय दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य विचारों व तथ्यों के आदान-प्रदान से है। संप्रेषण के माध्यम से प्रबंधक संस्था के लक्ष्यों, उद्देश्यों, नीतियों, आदेशों, कार्यक्रमों के बारे में कर्मचारियों को अवगत कराता है। यह प्रबंध का आधुनिक कार्य है।
3. निर्णयन-संस्था या उपक्रम की क्रियाओं में प्रवर्तन से लेकर समापन तक की सभी अवस्थाओं में निर्णय लेने पड़ते हैं। निर्णयन एक बौद्धिक प्रक्रिया है, जिसमें सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन किया जाता है। यह प्रबंध का महत्वपूर्ण सहायक कार्य है।
प्रश्न 4.
उच्चस्तरीय प्रबंध के कार्य लिखिए।
उत्तर:
उच्चस्तरीय प्रबंध के निम्न कार्य होते हैं –
- उपक्रम के उद्देश्यों को निर्धारित करना।
- संस्था के ट्रस्टी के रूप में उसकी रक्षा करना।
- मुख्य अधिशासी का चयन करना।
- संस्था की उपलब्धियों व परिणामों की जाँच करना।
- बजट को पारित करना।
- आय का उचित वितरण करना ।
- महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करना।
- व्यवसाय के दीर्घकालीन स्थायित्व के लिए प्रयास करना।
प्रश्न 5.
मध्यस्तरीय प्रबंध के कार्य लिखिये।
उत्तर:
मध्यस्तरीय प्रबन्ध के कार्य निम्न हैं –
- मुख्य अधिशासी की क्रियाओं में सहायता प्रदान करना।
- संचालनात्मक निर्णयों में सहयोग करना।
- प्रतिदिन के परिणामों से सम्पर्क बनाये रखना ।
- उत्पादन की उपलब्धियों की समीक्षा करना।
- उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा तय की गई सीमाओं के मध्य निर्धारित नीतियों का क्रियान्वयन करना ।
- अधीनस्थों के कार्यों का मूल्यांकन।
- उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु योजनायें तैयार करना ।
- उच्च व निम्न स्तर के मध्य उचित समन्वय व संप्रेषण का कार्य करना।
प्रश्न 6.
निम्नस्तरीय प्रबंध के कार्य लिखिए।
उत्तर:
निम्नस्तरीय प्रबंध के निम्न कार्य होते हैं –
- संस्था के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की पूर्ति हेतु योजनायें बनाना।
- कर्मचारियों को कार्य सौंपना।
- प्रति घण्टा कार्य एवं परिणामों पर निगरानी रखना ।
- त्रुटि के स्रोत स्थल पर निगाहें रखकर उचित कदम उठाना।
- उत्पादन कर्मचारियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये रखना।
- आवश्यकतानुसार कर्मचारियों से सम्पर्क बनाये रखना।
- कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन करना।
- कर्मचारियों के हितों, सुविधाओं का ध्यान रखकर मध्यम प्रबन्धकों को उचित सूचना देना।
प्रश्न 7.
प्रबंध के उद्देश्यों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
एक प्रभावी प्रबंध के उद्देश्य निम्नलिखित होते हैं –
1. न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम परिणाम प्राप्त करना – प्रमुखतः यह व्यापार के उद्देश्यों पर आधारित होता है जिसमें यह प्रयास किया जाता है कि कम-से-कम प्रयास, लागत व समय में अधिक-सेअधिक परिणाम प्राप्त किये जा सके अर्थात् उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के प्रयोग से अच्छे-सेअच्छे परिणामों को प्राप्त करना ही प्रबंध का प्रमुख लक्ष्य होता है।
2. नियोक्ता एवं कर्मचारी का विकास करना- एक अच्छा प्रबंध नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों का विकास करता है क्योंकि दोनों ही समाज के अंग होते हैं।
3. श्रम व पूँजी में समन्वय बनाये रखना- किसी भी उपक्रम में दो प्रमुख वर्ग होते हैं, प्रबंध का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य श्रम व पूँजी में सामंजस्य बनाये रखना है।
प्रश्न 8.
समन्वय और सहयोग में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समन्वय और सहयोग में अन्तर –
प्रश्न 9.
प्रबंध, प्रशासन तथा संगठन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रशासन एवं प्रबंध में कोई तीन अंतर अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंध, प्रशासन तथा संगठन में अन्तर –
प्रश्न 10.
प्रबंध और संगठन में कोई तीन अंतर बताइये।
उत्तर:
प्रबंध और संगठन में अन्तर –
प्रश्न 11.
“प्रबंध को जन्मजात एवं अर्जित प्रतिभा कहा गया है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंध एक जन्मजात एवं अर्जित प्रतिभा है – प्रबंधक जन्मजात होते हैं इसका आशय यही है कि प्रबंधक मनुष्य के पारिवारिक गुणों से बनते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि कुछ व्यक्ति जन्म से ही योग्य, चतुर तथा अनुभवी होते हैं और वे दूसरों पर नियंत्रण तथा नेतृत्व अच्छी तरह से कर सकते हैं। जिस प्रकार एक गायक का गला, नर्तकी के पैर ईश्वर की देन होते हैं उसी प्रकार एक प्रबंधक की प्रबंध शैली ईश्वर की देन है। आज प्रबंध की नई-नई तकनीक विकसित हो गई है।
प्रबंधक तैयार करने हेतु विभिन्न विश्वविद्यालयों, राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक संस्थान प्रारम्भ किये जा चुके हैं । आज एक ऐसा व्यक्ति भी श्रेष्ठ प्रबंध कार्य सम्पन्न कर सकता है जिसे प्रबंध का गुण जन्मजात न मिला हो। अतः प्रबंध एक जन्मजात प्रतिभा भी है और साथ-साथ अर्जित प्रतिभा भी।
प्रश्न 12.
प्रबंध को बहुआयामी अवधारणा क्यों माना गया है ?
उत्तर:
प्रबंध के अंतर्गत बहुत-सी क्रियायें शामिल होती हैं इसलिए इसे बहुआयामी अवधारणा माना गया है। कुछ प्रमुख क्रियाएँ निम्नलिखित हैं
- कार्य का प्रबंध-इसके अंतर्गत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्यों का प्रबंध करना होता है।
- लोगों का प्रबंध-इस क्रिया में कर्मचारियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की देखभाल करना तथा व्यक्तियों के समूहों की देखभाल की जाती है।
- प्रचालन का प्रबंध-इसके अंतर्गत आगतों का क्रय करना तथा उन्हें अर्द्ध-निर्मित वस्तुओं में बदलना आता है।
प्रश्न 13.
“प्रबंध सभी स्तरों में आवश्यक है।” स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संगठन किसी भी स्तर का क्यों न हो उसमें प्रबन्ध का अस्तित्व अवश्य रहता है। सामान्यतः प्रबन्ध के तीन स्तर होते हैं उच्च, मध्यम व निम्नस्तरीय प्रबन्ध । उच्च स्तर पर संचालक मंडल एवं जनरल मैनेजर प्रबन्धकीय कार्य देखते हैं, जबकि मध्यम स्तर पर विभिन्न विभागों के विभाग प्रमुख प्रबन्ध का कार्य करते हैं। निम्न स्तर पर निर्णयों की अपेक्षा पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्य अधिक किये जाते हैं। इस प्रकार संगठन के सभी स्तरों पर प्रबन्ध आवश्यक है।
प्रश्न 14.
प्रबंध के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबंध के निम्नलिखित तीन स्तर हैं –
1. उच्चस्तरीय प्रबंध-किसी उपक्रम के प्रबंध स्तरों में उच्चस्तरीय प्रबंध का स्थान सर्वोपरि होता है। एक वृहत् आकार के उपक्रम के उद्देश्य व नीतियों को सामान्यतः संचालक मण्डल द्वारा निर्धारित किया जाता है। संचालक मण्डल के कार्यों का वास्तविक निष्पादन प्रबंध संचालक या महाप्रबंधक करते हैं, जिसे मुख्य अधिशासी कहते हैं। मुख्य अधिशासी का प्रमुख कार्य संचालक मण्डल द्वारा जारी निर्देशों, नीतियों को जारी करना और उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक क्रियायें करना होता है।
2. मध्यस्तरीय प्रबंध-1940 के दशक में मेरी कुशिंग नाइल्स ने मध्यस्तरीय प्रबंध की विचारधारा को विकसित किया था। इस स्तर में विभागीय प्रबंधक जैसे-उत्पादन प्रबंधक, विपणन प्रबंधक, वित्त प्रबंधक, कर्मचारी तथा इनके समीपस्थ नीचे के अधिकारी जिनमें अधीक्षक, उपाध्यक्ष आदि को शामिल किया जाता है।
3.पर्यवेक्षणीय या निम्न स्तर प्रबंध-प्रबंधकीय स्तरों में पर्यवेक्षणीय प्रबंध निम्न स्तर का होता है। इसलिए इसे प्रथम पंक्ति का प्रबंध भी कहा जाता है। इस स्तर पर मुख्यतः फोरमैन, पर्यवेक्षक या कार्यालय पर्यवेक्षकों को शामिल किया जाता है। इस स्तर के प्रबंधकों का मुख्य कार्य यह देखना होता है कि उनके अधीनस्थ कर्मचारियों ने कार्य ठीक ढंग से किया है या नहीं। इस स्तर के प्रबंधकों का कार्य कर्मचारियों की नीतियाँ स्पष्ट करना, आवश्यक स्तर या प्रमाप निर्धारित करना, अनुदेश देना, मार्ग प्रशस्त करना, अभिप्रेरणा देना आदि है।
प्रश्न 15.
मध्यम स्तरीय प्रबंध क्या है ? इसके प्रमुख कर्त्तव्य बताइए।
उत्तर:
1940 के दशक में “मेरी कुशिंग नाइल्स” ने मध्यस्तरीय प्रबंध की विचारधारा को विकसित किया था। इस स्तर में विभागीय प्रबंधक जैसे- उत्पादन प्रबंधक, विपणन प्रबंधक, वित्त प्रबंधक, कर्मचारी तथा इनके समीपस्थ नीचे के अधिकारी, उपाध्यक्ष आदि को शामिल किया जाता है। “मेरी कुशिंग नाइल्स” के अनुसार- “उच्च स्तर एवं निम्न स्तर के मध्य के अधिकारी ही मध्य स्तरीय प्रबंध में शामिल किए जाते हैं।”
“फिफनर एवं शेरवुड” के अनुसार- “मध्य स्तरीय प्रबंध में क्रय प्रतिनिधियों, एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले विभागों, प्रमुख कार्यालय प्रबंधकों, उत्पादन प्रबंधकों और विभागीय संग्रहकर्ताओं को शामिल किया जाता है।”
मध्य स्तरीय प्रबंध के कार्य / कर्त्तव्य –
- मुख्य अधिशासी की क्रियाओं में सहयोग प्रदान करना।
- संचालनात्मक निर्णयों में सहयोग करना।।
- प्रतिदिन के परिणामों में सहयोग के साथ संपर्क बनाये रखना।
- उत्पादन की उपलब्धियों की समीक्षा करना।
- समय-समय पर कर्मचारियों का मूल्यांकन करना।
प्रश्न 16.
प्रबंध के सामाजिक उत्तरदायित्व को समझाइये।
उत्तर:
प्रबंध के छः सामाजिक उत्तरदायित्व निम्न हैं –
- उपभोक्ता के प्रति-उपभोक्ताओं को पर्याप्त मात्रा में श्रेष्ठ कोटि एवं सस्ती वस्तुएँ व सेवाएँ उचित समय पर उपलब्ध करानी चाहिए।
- सरकार के प्रति-सरकार द्वारा प्रतिपादित नीतियों, नियमों व कानून का पूर्णरूप से पालन करना, करों का पूर्ण भुगतान करना।
- पर्यावरण के क्षेत्र-विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को रोकने हेतु उचित उपाय करना, वृक्षारोपण करना व सरकार द्वारा चलाये जा रहे पर्यावरण योजनाओं में सहयोग प्रदान करना।
प्रश्न 17.
प्रबंध प्रक्रिया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंध प्रक्रिया के रूप में- प्रक्रिया से अभिप्राय चरणों की श्रृंखला से है। एक प्रक्रिया के रूप में प्रबंध का अर्थ परस्पर संबंधित कार्यों की एक श्रृंखला से है ताकि मानवीय तथा अन्य संसाधनों के प्रभावपूर्ण उपयोग द्वारा संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। इस प्रक्रिया में नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन तथा नियंत्रण कार्य शामिल है। प्रबंध को एक प्रक्रिया इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें कार्यों की एक क्रमबद्ध श्रृंखला होती है जो निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान देती है।
प्रश्न 18.
समन्वय में आने वाली कठिनाइयाँ एवं उनका समाधान बताइए।
उत्तर:
समन्वय में आने वाली कठिनाइयाँ एवं उनके समाधान निम्नलिखित हैं –
1. संस्थागत एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में भिन्नता (Difference in organisational and individual objectives)—यह तो निर्विवाद सत्य है कि संस्था एवं उसमें काम करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्य भिन्न होंगे क्योंकि संस्था चाहेगी कि उसको अधिकतम लाभ मिले जबकि कर्मचारी वर्ग चाहेगा कि उनको अधिकतम वेतन मिले। यदि कर्मचारी वर्ग ईमानदारी व सत्यनिष्ठा से काम करे तो दोनों के उद्देश्य एक ही समय में पूरे हो सकते हैं और समन्वय स्थापित करने में कठिनाई भी नहीं आएगी।
इसके विपरीत यदि कर्मचारी वर्ग केवल अपने उद्देश्यों की ओर ही ध्यान देता है तो उनका ऐसा व्यवहार समन्वय के मार्ग में बाधा उत्पन्न करेगा। संस्थागत एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में अंतर को समाप्त करने के लिए संस्था के प्रत्येक व्यक्ति को यह देखना होगा कि संस्था के उद्देश्य में उसका क्या योगदान है।
2. विभिन्न व्यक्तियों के उद्देश्यों में भिन्नता (Difference in individual objectives)-संस्था में कार्यरत विभिन्न व्यक्तियों के उद्देश्य भिन्न हो सकते हैं जिसके कारण सभी की कार्यप्रणाली में भिन्नता आ जाती है और अंततः समन्वय में इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए सभी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर समान उद्देश्य निश्चित कर लेने चाहिए और उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
3. कार्य प्रगति मूल्यांकन के प्रमापों में भिन्नता (Problem in the measurement and evaluation of work progress) -विभिन्न विभागों में एक जैसे कार्य की प्रगति मूल्यांकन के प्रमाप भिन्न हो सकते हैं। संस्था का ऐसा व्यवहार कर्मचारियों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है जिसका समन्वय पर विपरीत प्रभाव पड़ता इस समस्या से निपटने के लिए उच्च प्रबंधक को चाहिए कि एक जैसा काम करने वाले सभी कर्मचारियों की प्रगति का मूल्यांकन करने के प्रमाप समान रखे ताकि वे संस्था के प्रति अधिक निष्ठावान रहें।
4. जटिल संगठनात्मक ढाँचा (Complex organisational structure)- कई बार देखा जाता है कि संस्था का संगठनात्मक ढाँचा अस्पष्ट होता है अर्थात् यह स्पष्ट नहीं होता कि कौन किसका अधिकारी है और कौन अधीनस्थ । कई बार कर्मचारियों के अधिकार एवं दायित्व भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किये जाते। ऐसी स्थिति में समन्वय में बाधा आती है।
इस समस्या के समाधान के लिए उच्च प्रबंधक को चाहिए कि स्पष्ट एवं सरल संगठनात्मक ढाँचा तैयार करें।
प्रश्न 19.
एक भूमंडलीय प्रबंधक के सामने कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक भूमंडलीय (global) प्रबंधक के सामने निम्न प्रकार की चुनौतियाँ आती हैं देश में प्रबंधक के रूप में (In the form of Manager)-एक भूमंडलीय प्रबंधक के स्थानीय कार्यालय अथवा व्यवसाय में साझीदार के रूप में अपने देश की विधिक एवं व्यावसायिक उपस्थिति की स्थापना करनी होती है। वह ग्राहक, वकील एवं अप्रवासी अधिकारियों सहित विधिक इकाई के साथ संपर्क साधता है एवं उनसे सौदेबाजी करता है क्योंकि सेवाओं में यू.एस.ए. यूरोप में कार्य करने के लिए भारत में तकनीकी कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है।
वह भर्ती की सेवाएं प्रदान करने वाली स्थानीय कंपनियों से भी बातचीत करता है। वह एक और अहम् भूमिका निभाता है। वह बाह्यस्रोतीकरण (outsourcing) एवं वैश्विक सुपुर्दगी के कारण विपरीत सांस्कृतिक एवं बहु-सांस्कृतिक अवसरों के सकारात्मक प्रभाव पर जोर देकर अपने भावी ग्राहकों में सहजता की भावना पैदा करता है। इसके कारण उत्पन्न किसी भी शंका का समाधान भी करता है।
एक कार्यात्मक प्रबंधक के रूप में (In the form of divisional head)-वैश्विक प्रबंधक को यह सुनिश्चित करना होता है कि वह सही तकनीकी कौशल की भर्ती कर सकता है, इस कौशल से एक दृढ़ संसाधन के आधार का निर्माण कर सकता है एवं बहुत समय-क्षेत्र के रूप में भूमंडलीय कार्यवातावरण में इन दक्ष कर्मचारियों से काम लेकर सॉफ्टवेयर की कार्य योजनाओं को पूरा सकता है। इसके लिए वह उन व्यावसायिक चक्र जिसके अंतर्गत ग्राहक का व्यवसाय चलता है, पर आधारित ग्राहक की प्राथमिकताओं को समझ सकता है, जिन प्रक्रियाओं एवं पद्धतियों से ग्राहक परिचित है उनको समझ सकता है एवं उन्हें अपना सकता है और अंत में इस कार्य में ग्राहक की अपेक्षाओं का प्रबंधन सम्मिलित है।
इस प्रबंध में कार्यात्मक प्रबंधक को ग्राहक की प्राथमिकताओं के अनुरूप भारत एवं यू.एस.ए. अथवा यूरोप में क्रियाओं में समन्वय करना होता है, यह बताना होता है कि क्या संभव है और क्या संभव नहीं है तथा इसी के अनुसार अपने कर्मचारियों की अपेक्षाओं एवं संतुष्टि के स्तरों का प्रबंध करना होता है।
व्यवसाय के नेतृत्व के रूप में (In the form of leader)- भूमंडलीय प्रबंधक को बदलती हुई व्यावसायिक परिस्थितियों एवं ग्राहक की प्राथमिकताओं के प्रति सचेत रहना होता है। उसे बाह्यस्रोतीकरण में प्रवृतियों की पहचान करनी होती है एवं उसमें मिलने वाले अवसरों, संभावित जोखिमों के पूर्वानुमान की क्षमता का होना आवश्यक है।
प्रश्न 20.
“प्रबंध एक प्रणाली है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंध एक प्रणाली है। प्रणाली में निम्न विशेषताएँ होती हैं –
- प्रत्येक प्रणाली की एक उप प्रणाली होती है।
- प्रत्येक प्रणाली का एक निश्चित उद्देश्य होता है।
- प्रत्येक प्रणाली अपनी सभी प्रणालियों में समन्वय बनाये रखती हैं।
- प्रणाली में सन्देशवाहन गतिमान रहना चाहिए।
- एक प्रणाली को अन्य प्रणालियों से अलग नहीं किया जा सकता है।
उपर्युक्त विशेषताएँ प्रबंध में निहित हैं, अतः हम प्रबंध को एक प्रणाली कह सकते हैं।
प्रश्न 21.
“प्रबंध एक पेशा है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेशा कहलाने हेतु किसी व्यवसाय में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए
- पेशे में विशिष्ट एवं क्रमबद्ध ज्ञान का होना आवश्यक है।
- पेशे में तकनीकी ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।
- पेशे का उद्देश्य सेवा करना होता है।
- पेशे का ज्ञान कुछ विशिष्ट संस्थाओं से ही लिया जा सकता है।
- पेशा कार्य के बदले पारिश्रमिक आवश्यक है, अनिवार्य नहीं।
प्रश्न 22.
भारत में प्रबन्ध का क्या महत्त्व है ? समझाइए।
अथवा
पंचवर्षीय योजनाओं को ध्यान में रखते हुए भारत में प्रबन्ध के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रबन्धकों की मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है। नियोजित विकास के लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए भारत को अपनी प्रबन्धकीय कुशलता व गुण दोनों में · वृद्धि करनी है। भारत में निम्नांकित कारणों से प्रबन्ध का महत्त्व और भी अधिक है –
- देश में पंचवर्षीय योजनाओं को सफल बनाने की दृष्टि से।
- देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करने की दृष्टि से।
- देश के मानवीय तथा प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम उपयोग हेतु।
- प्रतियोगिताओं का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए।
- सरकारी तन्त्र में कुशलता के लिए।
प्रश्न 23.
समन्वय का महत्व लिखिए।
उत्तर:
व्यवसाय व्यापार हो या कोई भी संगठन या संस्था बिना समन्वय के कभी भी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती। किसी टीम की सफलता भी समन्वय पर आधारित होती है। बिना समन्वय के ना तो हवाई जहाज उड़ाया जा सकता है और न ही समुद्री जहाज को आगे बढ़ाया जा सकता है। किसी उपक्रम में समन्वय के महत्व . को बताते हुए कूण्ट्ज एवं ओ. डोनेल ने कहा है कि “समन्वय प्रबंध का एक कार्य ही नहीं हैं, अपितु प्रबंध का सार (Essence) भी है।” अतः स्पष्ट है कि प्रबंधकीय क्षेत्र में समन्वय का विशिष्ट स्थान है। समन्वय के महत्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
1. एकता को बल-समन्वय रहने से उचित तालमेल बना रहता है। उचित तालमेल से कर्मचारियों में एकता बनी रहती है तथा एकता से ही शक्ति प्राप्त होती है, शक्ति से विकास के मार्ग खुल जाते हैं । अतः समन्वय से विकास होता है तथा प्रबन्धकीय कर्मचारियों में एकता बनी रहती हैं।
2. विकास का बढ़ावा किसी भी संस्था या व्यवसाय का विकास उस समय ही सम्भव है जब वहाँ के उत्पादन के समस्त साधनों व विभागों के मध्य उचित समन्वय हो। समन्वय के बिना विकास की बात करना रेत पर महल बनाने जैसा होगा। समन्वय से विकास की गति तीव्र होती है।
3. प्रमाप एवं विशिष्टीकरण को प्राप्त करना-अपने उत्पादन के स्तर को निर्धारित प्रमाप पर लाने के लिये सभी वर्गों व उत्पत्ति के साधनों में उचित समन्वय आवश्यक है, ताकि एक-दूसरे की समस्याओं को सुनकर या देखकर उसका समाधान किया जा सके।
4. उपलब्ध साधनों का सदुपयोग-किसी भी संस्था या उपक्रम में विकास के साधन सीमित होते हैं। अतः उनका अधिकतम उपयोग हो इसके लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों के मध्य समन्वय आवश्यक है। उचित समन्वय को कार्यों में पुनरावृत्ति (दोहराव) नहीं होती। जिससे धन, सामग्री व समय की बचत होती है तथा उपलब्ध साधन का उचित व अधिकतम उपयोग सम्भव हो पाता है।
प्रश्न 24.
प्रबंध की प्रमुख सीमाओं को समझाइए।
उत्तर:
प्रबंध की आवश्यकता सर्वव्यापी है, किन्तु इसकी कुछ सीमाएँ हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- प्रबंध का कार्य मनुष्य से संबंधित है जो मानवीय स्वभाव से प्रभावित रहता है। प्रत्येक मनुष्य का आचरण पृथक्-पृथक् होता है, अतः सभी के लिए एक निश्चित प्रणाली नहीं अपनायी जा सकती है।
- प्रबंध के सिद्धान्त तकनीकीगत प्रक्रियाओं आविष्कारों, संगठन की रुचि, मनोविज्ञान आदि पर आधारित होते हैं, अतः प्रबंध का कोई सिद्धांत स्थायी रूप से लागू नहीं होता है।
- प्रबंध के कार्य उस संस्था के उद्देश्य, नीति व परिस्थितियों के अनुरूप होते हैं, अतः किसी एक संस्था के अनुभव को अन्य संस्थाओं में लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक संस्था का अपना अलग उद्देश्य,संगठन व कार्यप्रणाली होती है।
- प्रबंध के पास नेतृत्व, निर्णयन व नियंत्रण के अधिकार होते हैं, अतः प्रबंध के स्वभाव में नौकरशाही, लालफीताशाही व तानाशाही जैसी दूषित मनोवृत्तियाँ जन्म ले लेती हैं, जिससे संस्था का कार्य सीमित हो जाता है।
प्रश्न 25.
प्रबंध के प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं
1. नियोजन (Planning) – प्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्राथमिक कार्य नियोजन करना है। शील्ड (Shield) के शब्दों में “योजना विभाग प्रबन्ध का हृदय है जिसका एकमात्र कार्य उत्पादन के विभिन्न पहलुओं में कार्यरत कर्मचारियों की आवश्यकताओं को पूरा करना है।” नियोजन के अन्तर्गत किसी कार्य को किस प्रकार, किस व्यक्ति से, कहाँ पर, किस विधि से, कितने समय में पूरा करना है, इसकी रूपरेखा तैयार कर ली जाती है ताकि निर्धारित अवधि में लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। इस हेतु पूर्वानुमान (Forecasting) लगाया जाता है। प्रो. टेरी ने कहा है “नियोजन भविष्य के गर्भ में देखने की विधि है।” (Planning is a method of looking ahead)।
2. संगठन (Organization)- संगठन प्रबन्ध का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य है। “बिना संगठन के कोई भी प्रबन्ध जीवित नहीं रह सकता।” मानव व मशीन का सामूहिक प्रयास जो पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कार्य करता है संगठन कहलाता है। संगठन दो या अधिक व्यक्तियों का समूह होता है। मजबूत संगठन के बिना प्रबन्ध अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता, प्रबन्ध संगठन को मजबूत व प्रभावी बनाता है। व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग के विभिन्न साधनों में प्रभावपूर्ण सामन्जस्य स्थापित करना ही संगठन है।
3. नियुक्तियाँ (Staffing)- प्रबन्ध का तीसरा महत्त्वपूर्ण कार्य कर्मचारियों की नियुक्ति करना है, क्योंकि बिना कर्मचारी के संगठन नहीं और बिना संगठन के प्रबन्ध नहीं हो सकता। नियुक्ति कार्य हेतु बड़े-बड़े उत्पादन (उपक्रम) में अलग से विवर्गीय विभाग (Personnel Deptt.) खोला जाता है और इसी विभाग द्वारा नियुक्तियाँ की जाती हैं। कार्य पर नियुक्ति करने के पूर्व “व्यक्ति कार्य के लिये व कार्य व्यक्ति के लिये” (Man to job and job to man) के सिद्धांत का पालन करना चाहिये। यह प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव है।
4. संचालन (Direction)- संचालन, प्रबन्ध का चतुर्थ महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसे निर्देशन या नेतृत्व भी कहा जाता है। प्रबन्ध मस्तिष्क की भाँति होता है अतः इसका कार्य सम्पूर्ण व्यवसाय व उद्योग को संचालित करना होता है। वह अन्य कर्मचारियों को आवश्यक कार्य करने हेतु निर्देश देने का काम करता है। चूँकि कार्ययोजना प्रबन्ध द्वारा ही तैयार की जाती है। इसलिए संचालन या दिशा-निर्देश सम्बन्धी कार्य भी प्रबन्ध द्वारा ही किये जाते हैं।
प्रश्न 26.
जैक वैलश (Jack Welch) जो जी.ई. का सी. ई. ओ. (CEO) था, प्रबंधकों की सफलता के लिए कौन-कौन से संकेत दिए/लिखे ?
उत्तर:
जैक वैलश (Jack Welch) ने प्रबंधकों को सफलता के लिए निम्नलिखित संकेत दिये –
- स्वप्न देखो और फिर इस स्वप्न को वास्तविकता में बदलने के लिए अपने संगठन में ऊर्जा दो।
- सामरिक (strategic) महत्व के मामलों पर ध्यान केन्द्रित करो।
- मुख्य समस्या पर ध्यान केन्द्रित करो।। 4. प्रत्येक का योगदान लो एवं उच्च विचार जहाँ से भी मिले उनका स्वागत करो। 5. उदाहरण प्रस्तुत कर नेतृत्व प्रदान करो।
प्रश्न 27.
प्रबंध की प्रकृति या विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1.रबन्ध एक प्रक्रिया है- प्रबन्ध एक प्रक्रिया है तथा यह प्रक्रिया उस समय तक चलती रहती है, जब तक निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती, इसमें नियोजन, क्रियान्वयन, अभिप्रेरण, निर्देशन आदि शामिल रहते हैं, जिनकी सहायता से लक्ष्य प्राप्त होते हैं।
2. प्रबन्ध एक पेशा है- आज के औद्योगिक युग में प्रबन्ध एक पेशे के रूप में विकसित हुआ है तथा लगातार इसकी आवश्यकता व माँग बढ़ती जा रही है, इसी कारण आज कई संस्थानों में हम प्रशिक्षित एवं पेशेवर प्रबन्धक को संगठनों के शीर्ष पदों पर देख सकते हैं।
3. अदृश्य कौशल- प्रबन्ध को देखा नहीं जा सकता है, यह कार्य के परिणाम के रूप में हमारे सामने आता है, यदि कार्य के प्रयास सफल होते हैं, तो वह अच्छा प्रबन्ध कहलाता है। इसके विपरीत यदि कोई असफल होते हैं तो वहाँ पर प्रबन्ध की अकुशलता साबित होती है।
4. सामूहिक प्रयास- प्रबन्ध में सामूहिक प्रयासों पर ध्यान दिया जाता है, व्यक्ति विशेष पर ध्यान नहीं दिया जाता है, दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि एकता के साथ सामूहिक में संस्था के लिए कार्य करना प्रबन्ध का लक्ष्य होता है।
प्रश्न 28.
समन्वय का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा उसकी हमारे जीवन में क्या आवश्यकता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समन्वय- उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को तथा उनके कार्यों को एक सूत्र में बाँधना तथा क्रमबद्ध करना ताकि वे सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य कर सकें, समन्वय कहते हैं। समन्वय का साधारण अर्थ है तालमेल बैठाना। समन्वय के अभाव में उपक्रम की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
समन्वय का महत्व/आवश्यकता (Importance/Need of Coordination) समन्वय की आवश्यकता और महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है
1. संगठन का आकार (Size of the Organisation)- समन्वय की आवश्यकता संगठन के आकार के बढ़ने पर बढ़ती है क्योंकि बड़े संगठन में काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है, प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आवश्यकताएँ और उद्देश्य होते हैं, इसीलिए यहाँ सामान्य लक्ष्य के प्रति इन कर्मचारियों के प्रयासों को एकत्रित करने की अधिक आवश्यकता होती है। संगठनात्मक कुशलता के लिए समन्वय द्वारा संगठनात्मक लक्ष्यों और व्यक्तिगत लक्ष्यों में तालमेल स्थापित करना महत्वपूर्ण है।
2. कार्यात्मक विभिन्नता (Functional Differentiation)- एक संगठन के कार्य विभिन्न विभागों, वर्गों या श्रेणियों में विभाजित होते हैं और प्रत्येक विभाग अपने उद्देश्य को अधिक महत्व देकर अपना-अपना काम करते हैं।
परंतु वास्तव में ये विभाग अंतः संबंधित और परस्पर आश्रित होते हैं। इसीलिए विभिन्न वर्गों की क्रियाओं को समन्वित करने की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि वे एक ही संगठन के भाग होते हैं। विभिन्न विभागों के बीच में अंतर को कम करने के लिए समन्वय की आवश्यकता होती है।
3. विशिष्टीकरण (Specialization)- बड़े और आधुनिक संगठन में विशिष्टीकरण का उच्च स्तर होता है और विशेषज्ञ या कुशल व्यक्ति महसूस करते हैं कि केवल वे ही योग्य व्यक्ति हैं और वे हमेशा सही दिशा में सही निर्णय लेते हैं।
संगठन में कई विशेषज्ञ काम करते हैं। यदि वे सभी अपने ढंग से काम करेंगे तो इसका परिणाम संदेह एवं अव्यवस्था होगा। इसीलिए उन सभी विशेषज्ञों की क्रियाओं को एक सामान्य दिशा में समन्वित कर उनसे अधिकतम लाभ प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 29.
पेशे की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
पेशे की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(क) भली- भाँति परिभाषित ज्ञान का समूह-सभी पेशे भली-भाँति परिभाषित ज्ञान के समूह पर आधारित होते हैं जिसे शिक्षा से अर्जित किया जाता है।
(ख) अवरोधित प्रवेश- पेशे में प्रवेश परीक्षा अथवा शैक्षणिक योग्यता द्वारा सीमित होता है। उदाहरण के लिए यदि भारत में किसी को चार्टर्ड एकाउंटेंट बनना है तो उसे भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्था द्वारा आयोजित की जाने वाली एक विशेष परीक्षा को पास करना होगा।
(ग) पेशागत परिषद्- सभी किसी-न-किसी परिषद् सभा से जुड़ें होते हैं जो इनमें प्रवेश का नियमन करते हैं। कार्य करने के लिए प्रमाण-पत्र जारी करते हैं एवं आचार संहिता तैयार करते हैं तथा उसको लागू करते हैं।
(घ) नैतिक आचार संहिता- सभी पेशे आचार संहिता से बँधे हैं जो उनके सदस्यों के व्यवहार को दिशा देते हैं। उदाहरण के लिए जब डॉक्टर अपने पेशे में प्रवेश करते हैं तो वह अपने कार्य नैतिकता की शपथ लेते हैं।
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